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Showing posts from 2022

ओते दिसुम अर जियु कोव: सिरजोन कानि

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सिरजोन एनेटेः रे गोटा दिसुम हेन्दे नुबः गे तइकेना। ओते क तइकेना। होयो क तइकेना। दःक तइकेना। रिमिल क तड़केना। सिंगि, चन्डु: इपिल्ल को कको तइकेना। गड़ा, बुरू क तइकेना। दरू, दिरि, तसङ दुम्बु क तइकेना। मनोआ को कको तइकेना। जियु जोन्तु को कको तइकेना । मुसिङ दिन रेयः कजि तना । "ततङ” (सिंगबोंगा) हेन्दे-नुबः दिसुम बुगितेः नेल केड़ा। ओते होयो दः मनोआ, जियु-जोन्तु, दरू-दिरि, तसड- दुम्बु, सिंगि, चन्डु: इपिल्ल को बंकु दिसुमेः नेल बियुर केड़ा। निमिन मरङ दिसुम रे ततङ जानः जकेड कए नेल नम केड़ा। अःए एसकर गेए नेलोः लेना। समः सिइ-सोः ए ओन्डोः टोड-टोड दिसुम नेल केते ततङ एसुइ दुकु जना।। ततङ निदे सिंगि सुन्दर, सुगडा दिसुम बइ उडु: उनुडुः रे हलय-बलय लेना एनकाते दिसुम बइ-बनइ रे लगातिङ जना होयोः बइ केड़ा। दः बइ केड़ा। रिमिलः बई केड़ा। गोटा दिसुम दः गे दः लेना। सिंगि, चन्डु: ओन्डोः इपिल्ल कोः ए बइ केड़को। सिगि,चन्डु: ओन्डोः इपिल्ल कोआः मरसल ते हेन्दे) नुबः निर जना। दिसुम मरसल ते मरसल जोलोमोलो जना। ककोम ओन्डो: होरो सिरजोन नेना को बइ केड़ाएते, ततङ् ओते दिसुम बइ पइटि रेः आचु जना। ओते बइ लगिङ ककोम ओन्डोः होरो न...

दोन्डा ओन्डो: पेयांय (हो कहानी )

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सिदा सोमय रेय:अ कजि ना लेका लिज: तेङ मशीन क टइकेना। पेयांय कोगे हतु-हुतुरे सुतम् बोरके'ते लिजः तेङेतन टइकेना ओन्डो हतु-हतु तिनुलके'ते का रेदो हाट मुसिङ हाट कोरे को अकारिङेतन टइकेना। मिडो पेयांय लिज: रेगे लिज:को मोटरीके'ते दोयारे गुरूंडा काएते तिनुल अकारि लगिड़ ओवः एतेःए ओल्लयना। बुरू तोडं होराःए सेनो: तन टइकेना। दरू बुदड् तला होरा बुडु-बुडुतन अ:ए सुगंलगे सेनो तन टइकेना। चिमिनंते अकारिङेरे चिमिन टाका पोएसा होबओवा मेन उड़ु:उड़ु:'ए सेनो:तन टइकेना। बो:रे अर:अ कोदोरन् मियड़ मरंलेकन बटोवा दोन्डा पतह बितररेते रटा-पटातनेःए निर ओल्ल लेना: ओन्डो: अए समानं होरा निर कोटो' कि:इते मियड् दरूबुटारे हेपडाकने ते ए दोड़ो:-दोड़ो: वाइतना। दोन्डा निरे तनरे पतह रदा-पदा सड़ीते पेयांय बेटें तबेयना ओन्डो बोरो- गिसिरतेःए तिंगुतबेयना। बोरो मरङ्तेए उड़ू:तना चि- "निःइ दो अलोम सेनोवा मेन्ते होरा-ए निरकोटोंकेडिञा ओन्डो: ना दो दरूबुटारे हेपडाकने ते जोममेयाञ मेन्तेए दोड़ो: दोड़ो: वाञतना।" एन्का उड़ू:के'ते दोन्डा:ए कुलिइतना "मोके खाइबो कि लुगा खाइबो।" एन्काःए मेतयरेयो दोन्डादो दोड़...

आठवीं अनुसूची क्या है?

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 झारखंड, ओडिशा, बंगाल एवं विभिन राज्यों से हो भाषा को भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए हो भाषा प्रेमी,भाषाविद एवं हो भाषा आंदोलनकारी दिल्ली के लिए रवाना हो चुके है। यह आंदोलन पिछले कई सालों से चली आ रही है। इससे पहले भी राष्ट्रीय स्तर पर रेलवे चक्का जाम किया गया था। साथ ही वर्ष 2016 में हो भाषा को मान्यता दिलाने के लिए जमशेदपुर से राँची पदयात्रा भी हुई। सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए कई छोटे मोटे आन्दोलन भी हुए हैं। विभिन्न संगठनों के साथ ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमेटी के बैनर तले दिनांक 08 अगस्त 2022 को दिल्ली के जंतर मंतर पर शांतिपूर्ण धारना प्रदर्शन किया जाएगा। इसके बाद अगले दिन संबंधित विभागों को मेमोरेंडम दिया जाएगा। जाने क्या है आठवीं अनुसूची ? भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है।इसके बाद, सिन्धी भाषा को 21 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1967 ,कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा, और नेपाली भाषा को 71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 ई. में ज...

Sobon Sardar सोबोन सरदार

  सोबोन सरदार इतिहासकारों के अनुसार हो लोग मोगोलमुदी ( सिंहभूम) में 52वीं शताब्दी से रहते आ रहें हैं। प्राचीन काल से सिंहभूम घने जंगलों से, चारो ओर पत्थर एवं जंगल झाड़ घिरा हुआ है। 'हो' जाति के लोग जंगल- झाड़ को काट कर, साफ कर, गाँव-घर रहने योग्य बनाया और खेती-बारी का कार्य करते थे। दूसरे राज्य या दूसरे देश के साथ किसी तरह का झंझट झमेला नहीं था। आने-जाने का रास्ता जंगलों से भरा पड़ा था। इस राह पर चलना काफी डरावना था। रास्ते में बाघ भालू कहाँ पर निकल आयेंगें, सोचकर लोग डरते थे। वर्ष 1765 के आसपास झारखंड राज्य “जंगलो के महल नाम" से प्रचलित था। उस समय मोंगोलमुदी एक अनजान नाम था। मोंगोलमुदी किसी को मालूम न था । इसी का एक भाग कोल्हान है। उस समय यहाँ पर सिर्फ 'हो' जाति के लोग निवास करते थे। इसलिए 'हो दिसुम' के नाम से चर्चित हो गया। हो जाति के लोग ही यहाँ राजा एवं प्रजा बन गये। दोनों वर्ग के लोग एकजुट होकर रहने लगे। उस समय पोड़ाहाट के राजा हो जाति' को खुशी-खुशी जीवन बसर करते देख ईष्या से पागल हो गया था। वे 'हो' लोगों के क्षेत्र को तिरछी नजर से देखते थे। ...

Ghasi Singh "हो" वीर घासी सिंह

 " हो" वीर घासी सिंह   राजधानी में गणतंत्र दिवस पर चमकीले वस्त्र पहन कर जब राजपथ पर देश के विभिन्न भागों से आए वनवासियों की नाचती गाती टोलियाँ जनता के सामने से निकलती हैं तब क्या हमने इस बात की कल्पना भी की है कि इनमें उन लोगों की सन्तान भी हैं जिन्होंने सन् 1857 ई0 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही इस भूमि पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। स्वतंत्रता के इन्हीं प्रथम आराधकों में है सिंहभूमि की ' हो' जनजाति । अंग्रेजों के साथ इस जनजाति का पहला सम्पर्क सन् 1760 में हुआ जब मीर कासिम ने बंगाल की गद्दी मिलने के बदले मेदिनीपुर का इलाका ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया था। उन दिनों छोटानागपुर मेदिनीपुर का अंग था। इस भाग को अपने अधिकार में लेने की इच्छा मेदिनीपुर के अंग्रेज रेजीडेंट की हुई और उसने फर्ग्युसन के नेतृत्व में फौज की टुकड़ी रवाना कर दी। सन् 1813 तक सिंहभूम जिले को छोड़कर सारा छोटानागपुर अंग्रेजों के अधीन हो चुका था । आक्रमण हालांकि यहाँ के राजा ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया था। लेकिन ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सन् 1818 में सिहंभूम को पूरी ...

Purna Chandra Birua पूर्णचंद्र बिरूवा

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पूर्णचंद्र बिरुवा जिसने टाटा कॉलेज की स्थापना कर आदिवासी बहुल कोल्हान के एक हिस्से में लायी थी शैक्षणिक क्रांति पूर्णचंद्र बिरूवा । पूर्णचंद्र मतलब चंद्रमा का पूर्ण रूप जो कटा-पिटा न हो। जो पूर्ण हो। यानी पूर्णचंद्र अपने नाम के अनुरूप ही पूर्ण थे, अधूरे नहीं। जो भी किया पूर्ण किया। शिक्षा हो या राजनीति सबमें यही पूर्णता दिखी।  शैक्षणिक क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय तथा अनुकरणीय टाटा कॉलेज की स्थापना करनेवाले पूर्णचंद्र बिरूवा का जन्म 8 जुलाई 1917 को मंझारी प्रखंड के बड़ा लगड़ा नाम के एक अति पिछड़े गांव में एक प्रतिष्ठित व रसूखदार मानकी परिवार में हुआ था। सबने उसका नाम प्यार से पूर्णचंद्र रखा। तब किसी को आभास भी नहीं था कि बड़ा होकर ये बच्चा एक दिन शहर जाकर क्षेत्र का पहला और सबसे बड़ा कॉलेज की स्थापना कर शैक्षणिक क्रांति ला देगा। पूर्णचंद्र बिरूवा की प्राथमिक शिक्षा मंझारी प्रखंड में ही हुई। फिर एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय तथा बाद में जिला स्कूल चाईबासा से पढ़ाई की। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई साइंस कॉलेज पटना से पूरी की। कहते हैं कि देश की आजादी के पहले पश्चिमी सिंहभूम से किसी आदिवासी ...

LAKO BODRA DEATH ANNIVERSARY

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HEROH POROB (हेरो: पोरोब)

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                                                          हो हुदा रेया दोस्तुर (दुपुब दोस्तुर) हिसब ते हेरो: पोरोब अबू समाज रेया तीसरा मरंग पोरोब तना. साबिन मरंग पोरोब रे अबू अदिंग रिबू बोंगा बुरु या . नेन हेरो: पोरोब दो नेलेका बू बोंगाया - 1. हेरो: पोरोब रे अदिंग रे रुम (सियाली )सकाम रे रम्बा दालि बोंगा याबू. 2. कुंकल बाई तड नमा चाटू रे एन मुसिंग माडी बू इसिंग या . 3. आर नामा चाटू रेगे दालि बू तिकिया . 4. दालि रे सुनुम ससंग बुलुंग अर मसाला को काबू मिसेया. 5. अदिंग बितर रे बरिया रूम सकम रे 4-4 बाग़ (8) जगह रे बोंगा याबू . 6. मियेड रूम सकम रेदो 4 जगह रे 4 टी सिरजोन बोंगा बू बोंगा कोवा. - रंगा पाट - चंदन पाट - आ: बोंगा बीर बुरु बोंगा - सुकेन जतरा 7. आर मियेड रुम सकम रेदो 4जगा रे दुप्प्पुब दिसुम ...

Lako Bodra (लाको बोदरा)

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 लाको बोदरा लाको बोदरा का जन्म कोल्हान - सिंहभूम दिशुम के खूंटपानी प्रखण्ड के अयोध्या पीढ़ पाहसेया नामक राजस्व गाँव में सन् 19 सितंबर 1919 ई. में हुआ था। लाको बोदरा में के पिता लेबेया बोदरा एक धनी किसान थे। माता का नाम जानो कुई था । पाहसेया गाँव में अधिकांशतः बोदरा किलि (गोत्र) के लोग निवास करते हैं। 30-40 परिवारों का यह गाँव समतल एवं मैदानी इलाके में अवस्थित है। चाईबासा-चक्रधरपुर के बीच सड़क किनारे अवस्थित खूँटपानी गाँव से उत्तर दिशा में पाहसेया जाने में लगभग चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। पाहसेया गाँव के पूरब दिशा में दोपाई गम्हरिया, पश्चिम में बड्चोम हातु, टाकुरा गुटू, उत्तर में चुडुयुः तथा दक्षिण में दोपाई आदि गाँव अवस्थित हैं। इसी पाहसेया गाँव में लाको बोदरा का जन्म हुआ था। वंश वृक्ष का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है: लाको बोदरा का वंशवृक्ष लेबेया बोदरा के चार पुत्र- 1. सुमी कुई 2. लाको बोदरा 3. डेलका कुई 4. बालेमा कुई 5. दामु बोदरा। इस वंश वृक्ष के आधार पर लाको बोदरा अपने पिता लेबेया बोदरा के पाँच सन्तानों में दूसरी सन्तान थे। वे बचपन से ही चंचल थे। बड़े बुजुर्...

जोनोम दोसतुर

खुशहाल जीवन व्यतित करने वाले हो समुदाय के लोगों की पहचान उनके रिति रिवाज परंम्परा से ही हो जाती है। जिसप्रकार शादी ब्याह की परंम्परा होती है उसीप्रकार किसी शिशु के जन्म की भी परम्परा एवं रिति रिवाज होते हैं। एक नवजात शिशु के जन्म के उपरान्त किस तरह के काम करने चाहिए कैसे-कैसे काम नहीं करने चाहिए किस तरह के खान-पान से जन्म देने वाली माँ को परहेज करना चाहिए ताकि उसे किसी तरह के दुःख तकलीफ ना हो इन सारे चीजों की जानकारों आदि काल से ही देखते सुनते एवं काम करते-करते लोंगो में स्थानातरिंत होती जाती है। अर्थात दूसरे शब्दों में कहे तो इसे ही दोस्तुर कहते है। नवजात शिशु के जन्म होने पर हो जाति का अलग ही रिवाज होता है। बच्चे को जन्म देने वाली माँ नवजात शिशु और शिशु के जन्म के समय उपस्थित औरत बाकी दूसरे लोगों के साथ सटती नहीं है ना ही किसी को छूती है। वो लोग अलग ही हटकर रहती है। नदी तालाब या कहीं दूर जाने पर भी पाबन्दी रहती है। क्योंकि इस अवधि में उन्हें छूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि छूत के समय नदी-तालाब, देशाउली पूजा स्थल, पूर्वजों को पूजने का स्थल एवं अन्य स्थलों में जाने से वे स्थल दूषित...

सेता आंदि

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आदिवासियों के गुप्त🙈🙊🙉 ज्ञान को आधुनिक समाज अंधविश्वास मानता है. सेता-आंदि :आदिवासी प्रथा के अनुसार पशु-योनि अर्थात   " छोटे कुत्ते 🐶 से शादी" के लिए बच्चों के जन्म के समय लक्षण: 1. बुटितेगे  हतर कनो:अ: होनको 2. चेतन गिन्डुरे दाटा ओमोन:कन होनको 3. कट:प: होरा जोनोमो होनको 4. रिया चुटान होनको 5. टेर मेडन होनको 6. उमासी रे जोनोम:कन होनको 7. द्वितिथि रे जोनोम:कन होनको 8.आ: हेजोले तन होनको 9. हुपु होनको 9. तुरूइया गंडानको. 10. अन्य अस्वाभाविक जन्म होने पर.  आदिवासियों में खासकर हो'समुदाय में एक अजीब परम्परा आदिकाल से हमारे  पूरखों ने आस्था व अनुभव के आधार पर समस्या के समाधान का उपाय निर्धारित कर  परम्परा व दस्तूर के रूप में स्थापित किया है, जो आज भी जारी है वो है "सेता:आंदि" अर्थात नव शिशु को 1-3 वर्ष तक में एक कुत्ते के साथ शादी रचायी जाने का रिवाज बना दिया गया है.  3वर्ष के बाद कुत्ते से शादी नहीं होने पर दूसरी विधि विधान से जन्मदोष का निराकरण किया जाता है.   आज भी कोल्हान क्षेत्र के आदिवासी गाँवों में अक्सर उनके सबसे बड़ा सृष्टि पर्व "मांगे पोरो...

DINDA KUI HO BOOK

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DINDA KUI HO BOOK 👈👈👈👈👈 PRESS HERE FOR READ HO BOOK DINDA KUI. WRITER ADITYA PRASHAD SINHA.

सिबिल जोवार

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बाह मुतुड् सोड़ान बह लेका नीतिरेन में दुलड़ साबिन को चल इडे कोम