सेता आंदि


आदिवासियों के गुप्त🙈🙊🙉 ज्ञान को आधुनिक समाज अंधविश्वास मानता है.


सेता-आंदि :आदिवासी प्रथा के अनुसार पशु-योनि अर्थात 

 " छोटे कुत्ते 🐶 से शादी" के लिए बच्चों के जन्म के समय लक्षण:

1. बुटितेगे  हतर कनो:अ: होनको

2. चेतन गिन्डुरे दाटा ओमोन:कन होनको

3. कट:प: होरा जोनोमो होनको

4. रिया चुटान होनको

5. टेर मेडन होनको

6. उमासी रे जोनोम:कन होनको

7. द्वितिथि रे जोनोम:कन होनको

8.आ: हेजोले तन होनको

9. हुपु होनको

9. तुरूइया गंडानको.

10. अन्य अस्वाभाविक जन्म होने पर. 


आदिवासियों में खासकर हो'समुदाय में एक अजीब परम्परा आदिकाल से हमारे  पूरखों ने आस्था व अनुभव के आधार पर समस्या के समाधान का उपाय निर्धारित कर  परम्परा व दस्तूर के रूप में स्थापित किया है, जो आज भी जारी है वो है "सेता:आंदि" अर्थात नव शिशु को 1-3 वर्ष तक में एक कुत्ते के साथ शादी रचायी जाने का रिवाज बना दिया गया है. 

3वर्ष के बाद कुत्ते से शादी नहीं होने पर दूसरी विधि विधान से जन्मदोष का निराकरण किया जाता है.

 

आज भी कोल्हान क्षेत्र के आदिवासी गाँवों में अक्सर उनके सबसे बड़ा सृष्टि पर्व "मांगे पोरोब" के अवसरों पर हरमागेया के दिन यह शादी अक्सर देखने को मिलता है.

 

इस दिन जन्म-दोष को काटने का सबसे प्रभावकारी दिन माना जाता है.


पढ़े-लिखे कुछ आदिवासी और अन्य समुदायों के लोग इस पशु-योनि(छोटे कुत्ते) के साथ शादी की बातें सुनकर इस परम्परा पर व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष करते हुए परिहास करते हैं कि आज के इस विज्ञान युग में 

आदिवासियों की यह कुत्ते की🐶 शादी एक अबोध बालक/बालिका के साथ कराना हास्यास्पद  और मूर्खतापूर्ण क्रियाक्रम की संज्ञा देते हैं.


 किन्तु गाँवों में जीवन जीने वाले अनपढ़ तो पूरी आस्था के साथ बच्चों की जीवन रक्षार्थ, सुरक्षा की दृष्टिकोण से इसे मानते हैं और बहुत खुशी खुशी इसका अनुपालन समुदाय के साथ कराते हैं. 


पढ़े-लिखे शिक्षित वर्ग भी जो ग्रामीण परिवेश में रहते हैं और इसकी महता को जानते हैं; अनुपालन करते हैं.


 केवल ऐसे शिक्षित हो'परिवार जो परम्परागत रीति रिवाज से न वाकिफ हैं, और शहरी सभ्यता के प्रभाव में हैं, वो इस परम्परा को देखने सुनने पर अपमानित सा शर्म महसूस करते हैं. इसके कारण आदिवासी कहलाने में भी शर्म महसूस करते हैं. वास्तव में वे ऐसे परम्पराओं के पीछे के गूढ़ रहस्यों को नहीं जानते हैं.


 यह ज्ञान आधुनिक किताबों में लिखित रूप में नहीं मिलेगा अपितु ग्रामीण जीवन को साक्षात् निकट से पुरखों के बताये मार्ग पर का अनुशरण करने व जीने पर ही प्राप्त हो सकता है.


क्यों कराते हैं कुत्ते के साथ शादी ? 


हमारे आदिवासी पूरखों ने सदियों जीवन जीने के बाद, कई दु:ख,साधारण मृत्यु और दुर्घटनाओं के तहत असाधारण मौतों💀 को सहने के पश्चात कई कड़ुवा अनुभवों के बाद एक निष्कर्ष निकालने के बाद एक जीवन सिध्दांत व जीने के तारीके निर्धारित किया. इन्हीं में से एक "कुत्ते से शादी" नामक परम्परा भी एक है.

 

 आदिवासी असाधारण तारीके से जन्मे बच्चों की शादी एक कुत्ते के पिल्ले साथ खुशी खुशी करवाते हैं. जैसे कि उपरोक्त अस्वाभाविक प्रकार से जन्मे बच्चों को आदिवासी परम्पराओं के आधार पर 'जन्मदोष' माना जाता है. 

उपरोक्त प्रकार के जन्मदोष जिस नवजात शिशु पर दृष्टिगोचर होता है, पुरखों ने कहा है कि उनका अकाल मृत्यु हो सकती है.


अतएव इस ग्रहदोष व जन्म-दोष को काटने के लिए मनुष्य-योनि का विवाह पशु-योनि के साथ नियम दस्तूर के साथ सम्पन्न कर समाप्त की जाती है.


इस विधि को केवल आदिवासी पूर्वजों को सदियों अनुभव के बाद पता चला है और अपने समाज को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परम्परा दस्तूर बना है.


सेताआंदि के आलोचकों को सलाह :--


इस परम्परा को नकारने वाले हो'समुदाय के पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी अपने बच्चों पर  पुनः अनुभव के लिए आजमा सकते हैं. लेकिन जन्म दोष के  लक्षणों को जानने के बाद डायरी में लिख दें ताकि अपनी पीढ़ी नहीं तो दूसरी पीढ़ी को साक्षात् प्रैक्टिकल अनुभव समाज को पुनः मिले. 


क्योंकि पुरखों के अनुभवों को हम नहीं मान रहे हैं तो पुनः परीक्षण करना होगा. 


कैसे हानि होती है? 


जिनके गले में नाभी की नाल फंसी होकर जन्म होता है , वे भविष्य में अपने आपको स्वयं कोई भी कारण से फांसी लगाकर कर मृत्यु को प्राप्त करेंगे. जितना भी यथेष्ट कारणों को दर्शाया जाये, वो मात्र एक बहाना बन जायेगा, किन्तु यह आदिवासी पुरखों के अनुसार यह जन्म दोष है. 

 इस जन्म दोष के कारण भविष्य में अकाल मृत्यु से बचने का उपाय जन्म दोष को समाप्त करने के लिए पशु-योनि से शादी कुत्ते के साथ करवाकर आदिवासी अपनी जीवन रक्षा करते हैं. 

 

इसी तरह से उपरोक्त अस्वाभाविक जन्मने वाले बच्चों का भविष्य में स्वाभाविक मृत्यु न होकर दुर्घटनाओं के बहाने असाधारण मौत होने का संकेत है.

 जैसे :

👉रोड एक्सीडेंट से अकाल मौत

👉गहरा पानी में डुबकर मौत

👉नाव के पलट जाने से पानी मौत

👉बिजली के करन्ट से मौत

👉वज्रपात से मौत

👉विषैला सर्प दंश से मौत

👉जंगली जानवरों के आक्रमण से        मौत

अर्थात अस्वाभाविक मौत के शिकार होने के उपरोक्त जन्म दोष भविष्य के संकेत जन्मदिन पर ही आदिवासी लोग भांप लेते हैं. 

लेकिन जिन शिक्षित वर्ग को इन सबका ज्ञान नहीं है. यहाँ तक कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के डाक्टरों  को भी इसका ज्ञान नहीं हैऔर न ही विश्वास. क्योंकि मेडिकल ज्ञान की किताबों में इसका जिक्र नहीं है.

 

अब आदिवासियों की इस

 गुप्त🙈🙊🙉 ज्ञान को आधुनिक समाज नहीं मानता है.

(साभार - नरेश देवगम)

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