Lako Bodra (लाको बोदरा)


 लाको बोदरा


लाको बोदरा का जन्म कोल्हान - सिंहभूम दिशुम के खूंटपानी प्रखण्ड के अयोध्या पीढ़ पाहसेया नामक राजस्व गाँव में सन् 19 सितंबर 1919 ई. में हुआ था। लाको बोदरा में के पिता लेबेया बोदरा एक धनी किसान थे। माता का नाम जानो कुई था । पाहसेया गाँव में अधिकांशतः बोदरा किलि (गोत्र) के लोग निवास करते हैं। 30-40 परिवारों का यह गाँव समतल एवं मैदानी इलाके में अवस्थित है। चाईबासा-चक्रधरपुर के बीच सड़क किनारे अवस्थित खूँटपानी गाँव से उत्तर दिशा में पाहसेया जाने में लगभग चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। पाहसेया गाँव के पूरब दिशा में दोपाई गम्हरिया, पश्चिम में बड्चोम हातु, टाकुरा गुटू, उत्तर में चुडुयुः तथा दक्षिण में दोपाई आदि गाँव अवस्थित हैं। इसी पाहसेया गाँव में लाको बोदरा का जन्म हुआ था। वंश वृक्ष का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:


लाको बोदरा का वंशवृक्ष


लेबेया बोदरा के चार पुत्र- 1. सुमी कुई 2. लाको बोदरा 3. डेलका कुई 4. बालेमा कुई 5. दामु बोदरा।


इस वंश वृक्ष के आधार पर लाको बोदरा अपने पिता लेबेया बोदरा के पाँच सन्तानों में दूसरी सन्तान थे। वे बचपन से ही चंचल थे। बड़े बुजुर्गों के संसर्ग में रहना उन्हें अधिक पसन्द था। लाको बोदरा के माता-पिता जानो कुई और लेबेया बोदरा का अपने पुत्र लाको के भविष्य के प्रति अनुमान कुछ अलग ही था।


लाको बोदरा की शिक्षा : जिस समय लाको बोदरा का जन्म हुआ, उस समय कोल्हानवासियों की स्थिति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी। अशिक्षा का माहौल व्याप्त था। शिक्षा के मामले में हो समाज एक सीमित और संकुचित दायरे में फंसा था। देश विदेश की घटनाओं से लोगों को कोई मतलब नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने लोगों को शिक्षा देने की दिशा में प्रयास किया, ताकि लोगों को अक्षर ज्ञान देकर उनसे अपने मनोनुकूल काम करवाया जा सके। ब्रिटिश सरकार ने कोल्हान में कुछ गिने-चुने स्थानों पर स्कूल बनवाने का काम आरंभ किया। कुछ जगहों पर अपर प्राइमरी स्कूल, मीडिल स्कूल तथा हाईस्कूल चलाए जाने लगे।


लाको बोदरा के गाँव पाहसेया के निकट ही बड्चोम हातु में भी एक प्राइमरी स्कूल था । पाहसेया गाँव के पास ही पुरुईयाँ (पुरनीया) गाँव में एक मिड्ल स्कूल भी था, जिसे बाद में हाईस्कूल का दर्जा प्राप्त हुआ। उस समय पुरुईयाँ गाँव में एक साप्ताहिक ग्रामीण बाजार लगा करता था, जहाँ आसपास के गाँवों के लोग अपनी जरूरत की वस्तुओं का विनिमय एवं खरीद-बिक्री किया करते थे।


लाको बोदरा की शिक्षा की शुरुआत सरकारी प्राइमरी स्कूल बड्चोम हातु से हुई। प्राइमरी शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने पुरुईयाँ मीडिल स्कूल में दखिला लिया। पुरुईयाँ मिड्ल स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद वे अपने मामा के पास चक्रधरपुर में रहने लगे। उनके मामा ने उनका ग्रामर स्कूल, चक्रधरपुर में दखिला कराया। उस समय ग्रामर स्कूल को एंग्लो इन्डियन स्कूल भी कहा जाता था। चूंकि उस समय रेलवे में कार्यरत अधिकांश एंग्लो-इन्डियन कर्मचारियों के बच्चे ग्रामर स्कूल में ही पढ़ते थे। संयोग से उस समय चक्रधरपुर के नेता नरपति सिंह का पुत्र युवराज कुंअर सिंह एवं राजकुमारी पद्मावती भी उसी विद्यालय में पढ़ रही थी। उस वक्त छात्र लाको मन लगाकर पढ़ता था। वह खेलकूद, नाटक, गीत संगीत में भी दिलचस्पी लेता था । बासुरी बाजाने में उसे महारत हासिल थी और लाको इसके लिए पूरे स्कूल में काफी लोकप्रिय थे। छात्र लाको के बांसुरी वादन से प्रभावित राजा नरपति सिंह कभी-कभी उन्हें अपने महल में आमंत्रित करते थे। राजा के मन में लाको बोदरा के प्रति स्नेह था और राज परिवार में उनका आना-जाना लगा रहता था। उन्हें राज परिवार के पुस्तकालय में पुस्तकें पढ़ने की अनुमति मिल गयी। उन्हें इस पुस्तकालय में विभिन्न प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन करने का अवसर मिला। छात्र लाको बोदरा ने चक्रधरपुर में नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की। इसके बाद सन् 1940-42 में उन्होंने जिला स्कूल चाईबासा में दाखिला ले लिया। जिला स्कूल चाईबासा से लाको बोदरा ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद लाको फादर डिजाडिन के पास जाकर अंग्रेजी की ट्यूशन लेने लगे। फादर डिजाडिन चाईबासा के पुलिस लाईन के पास एक मकान में रहा करते थे। फादर डिजाडिन से लाको बोदरा का काफी मधुर संबंध स्थापित हो गया था। फादर डिजाडिन से लाको बोदरा को अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान मिला। इसके बाद लाको बोदरा मरंग गोमके जयपाल सिंह के संपर्क में आये और उनके साथ रहने लगे। जयपाल सिंह के साथ लाको बोदरा को जालंधर (पंजाब) जाने एवं रहने का मौका मिला। उन्होंनें जालंधर सिटी कॉलेज से स्नातक (विज्ञान) किया। साथ ही वहां होमियोपैथिक चिकित्सा की डिग्री भी ली।


सामाजिक चिन्तन लाको बोदरा जालंधर सिटी कॉलेज से स्नातक कर वापस झारखण्ड आ गए। यहां नोवामुंडी के पास डांगुवापुसी में उन्होंने लिपिक के रूप में रेलवे में योगदान दिया। जब वे नौकरी में थे तब उन्होंने एक लिपि का अविष्कार किया।

नयी लिपि में लिखि गयी पाठ्य पुस्तकें जोड़ापोखर, झींकपानी अंडो इपिल्ल माला मुद्रा प्रेस में छापी गयी। नयी लिपि अक्षर के लिए कलकत्ता में ब्लॉक बनवाया गया। विद्यालय में अन्य विषयों की पढ़ाई के साथ हो भाषा में नयी पाठ्य पुस्तकों का अध्यापन होता था। छात्रों को बढ़ईगिरी, लोहारी, बुनाई, बागवानी, सिलाई-कढ़ाई का भी प्रशिक्षण दिया जाता था। साथ ही लाको बोदरा धर्म विज्ञान संबंधी उपदेश की भी कक्षाएं लेते थे। उस समय विद्यालय के कुछ शिक्षक हो जनजाति के थे तथा स्वैच्छिक रूप से काम करते थे। वे सभी लाको बोदरा के अनुयायी थे। प्रधानाध्यापक के रूप में सिद्धेश्वर बिरुवा नियुक्त किये गये थे। ये सभी कार्यक्रम सन् 1959-60 के दशक में चलाये जा रहे थे। बाद में इसी प्रकार के तीन विद्यालय जगन्नाथपुर, मझगाँव तथा जमशेदपुर में खोले गये। जोड़ापोखर विद्यालय को कुछ कठिनाई के कारण सन् 1965 में बन्द कर दिया गया तथा बाद में मझगाँव तथा जगन्नाथपुर विद्यालय भी बंद हो गए।


आदि समाज के अंतर्गत लाको बोदरा ने पूरे कोल्हान में कुल दस केन्द्र खोले । उड़ीसा के क्योंझर जिले में भी एक केन्द्र खोला गया। ये केन्द्र निम्न स्थानों पर अवस्थित थे:


1. जोड़ापोखर झींकपानी


2. घाटशिला के निकट दाईगोड़ा


3. लोटा खूंटपानी प्रखण्ड


4. जमशेदपुर


5. गुड़ासाई - मनोहरपुर


6. बड़ानन्दा - जगन्नाथपुर के निकट के


7. टुन्टाकटा - मझगाँव के निकट


8. टोन्टो झरझरिया के निकट


9. सुकिन्दा - उड़ीसा के क्योंझर जिले में 10. डांगुवापुसी - जगन्नाथपुर के निकट प्रत्येक केन्द्र चयनित सदस्यों की एक संगठित स्थानीय समिति द्वारा चलाया जाता था। आदि समाज के सदस्यों को समाज के नियमावली तथा अधिनियमों का अनुपालन करना पड़ता था। लाको बोदरा द्वारा स्थापित आदि समाज एक सामाजिक और भाषाई आन्दोलन का केन्द्र बन गया था। हो समाज पर इसका व्यापक प्रभाव था। आदि समाज एक संगठित मंच के रुप में कोल्हान के आदिवासियों को एक भाषाई स्वाभिमान की ओर ले जाने लगा।


आदि समाज का उदय उस इलाके में हुआ था जहाँ परंपरागत आदिवासी मूल्य तथा औद्योगिक व्यवस्था एक साथ मौजूद थी। आदिवासी समाज औद्योगिक आबादी के साथ सांस्कृतिक सम्पर्क की ओर उन्मुख हो चुका था। 29 जून 1986 में लाको बोदरा की मृत्यु के बाद से आदि समाज के आन्दोलन की गति धीमी हो चली है। इसे आज सशक्त नेतृत्व की जरुरत खटक रही है।




 

Comments

Popular posts from this blog

लुपुः कोपे कुल्गियाकिङ हो कहानी

Korang Kakla - कोरङ् ककला

Korang Kakla कोरङ् ककला 06 हो न्यूज़ पेपर