Sobon Sardar सोबोन सरदार

 सोबोन सरदार

इतिहासकारों के अनुसार हो लोग मोगोलमुदी ( सिंहभूम) में 52वीं शताब्दी से रहते आ रहें हैं। प्राचीन काल से सिंहभूम घने जंगलों से, चारो ओर पत्थर एवं जंगल झाड़ घिरा हुआ है। 'हो' जाति के लोग जंगल- झाड़ को काट कर, साफ कर, गाँव-घर रहने योग्य बनाया और खेती-बारी का कार्य करते थे। दूसरे राज्य या दूसरे देश के साथ किसी तरह का झंझट झमेला नहीं था। आने-जाने का रास्ता जंगलों से भरा पड़ा था। इस राह पर चलना काफी डरावना था। रास्ते में बाघ भालू कहाँ पर निकल आयेंगें, सोचकर लोग डरते थे।


वर्ष 1765 के आसपास झारखंड राज्य “जंगलो के महल नाम" से प्रचलित था। उस समय मोंगोलमुदी एक अनजान नाम था। मोंगोलमुदी किसी को मालूम न था । इसी का एक भाग कोल्हान है। उस समय यहाँ पर सिर्फ 'हो' जाति के लोग निवास करते थे। इसलिए 'हो दिसुम' के नाम से चर्चित हो गया। हो जाति के लोग ही यहाँ राजा एवं प्रजा बन गये। दोनों वर्ग के लोग एकजुट होकर रहने लगे।


उस समय पोड़ाहाट के राजा हो जाति' को खुशी-खुशी जीवन बसर करते देख ईष्या से पागल हो गया था। वे 'हो' लोगों के क्षेत्र को तिरछी नजर से देखते थे। इस बात से हंसी आता है कि हो क्षेत्र को राजा सिर्फ अपना समझते और हथियाना चाहते थे। ऐसा इसलिए करते थे कि हो लोग आपस में उलझ जायें एवं छिन्न-भिन्न हो जाएँ। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का रणनीति बनाता था। परन्तु हो जाति के लोगों की जंगल-जमीन, रीति रिवाज और संस्कार के सामने राजा का दाल गलता नहीं था। हो दिसुम (कोल्हान) के खरसांवा - सरायकेला और पोड़ाहाट के राजाओं का सहयोग लेने के लिए अंग्रेजों को आमंत्रण किया गया।


20 फरवरी, 1820 को मेजर रफसेज का सरायकेला आगमन हुआ। पोड़ाहाट, सरायकेला और खरसांवा के राजाओं ने इकरारनामा पर हस्ताक्षर किये। इस तरह से अंग्रेजों के हाथों अधिकार चला गया। इन लोगों का राज्य छिन गया। इसके बाद मेजर रफसेज 22 से 24 फरवरी तक राजाबासा गांव में बस गये। बैठकी बुलाई और इस बैठकी में मुण्डा-मानकी को न्यौता दिया गया। इन लोगों के सामने इन्होंने 5 मांगे रखी।

1. हर एक जोड़ा बैल पर राशि देय हो (प्रत्येक जोड़ा पर 50 पैसे ) । 2. सिंहभूम (मोंड़ो) में उड़िया का पढ़ाई होना चाहिए।


3. कोल्हान के बीचो बीच आने-जाने का जो रास्ता है, वहाँ जंगल-झाड़ साफ करवाना।


4. कोल्हान के गाँव, घर वाले अपने मर्जी से न वरोनोः (वरोन शर्त ) 5. चोरी, छिनतई, मार-पीट करने वालों के दण्ड को सरकार के पास से स्वीकृति प्राप्त होना।


इन 5 मांगों (अनासि-वरोन) प्रचार-प्रसार करते हुए अलग-अलग जगह के मुण्डा मानकियों को स्वीकार कराना एवं 25 मार्च, 1820 को मेजर रफसेज गुमला पीढ़ का चाईबासा बरकन्दा टोली में पहुँचा। वहाँ बस कर शर्त मनवाने के लिए मुण्डा मानकियों को बुलवाया गया। इसके बाद बड़ में स्थित जैंतगढ़ तक पहुँचे। बड़ पीढ़ में रहने वाले जमींदार रघुनाथ बीसी के यहाँ पहुँचे।


उस समय कुन्डियाघर गाँव में सोबोन मुण्डा सरदार की तरह वहाँ रहते थे। सोबोन मुण्डा जोगना गोन्डाई के वंशज थे। इस तरह इनका वंशज था, बिन्दु बूढ़ा के सात बच्चे थे। लोपो, रिपा एवं के.के. सोबोन । लोपो बूढ़ा का पुत्र था। सोबोन के बच्चे क्रमशः जुमाल, मुदु, सागर, मानेया दामु और कोलय। इस वंश के पूर्वज कुन्डियाघर भोण्डा, तिलायपी और नारंगा में रहते थे। इनका मुख्य जड़ वाला गाँव कुन्डियाघर है।


उस समय सोबोन मुण्डा सरदार हुआ करते थे। बहुत शक्तिशाली एवं भरोसेमन्द था। लोग इनका काफी मान-सम्मान करते थे। रघुनाथ बीसी एवं पोड़ाहाट के राजा, रफसेज आंडे और के. इशारा के अनुसार बड़ पीढ़ के लोग बहुत खुशीपूर्वक जीवन निर्वाह कर रहे थे। सोबोन मुण्डा से ये बर्दास्त नहीं हुआ। इसलिए सोबोन मुण्डा बमान घाटी गौनी के लालगढ़ और आंवला पीढ़ के हो लोग पाँच मांगो को स्वीकार करने के लिए दोस्ती का रिश्ता बनाया। दोस्ती के आड़ में सोबोन मुण्डा बढ़पीढ़ और वनतरिया पीढ़ के लोगों को खबरदार किया कि पोड़ाहाट राजा, मेजर रफसेज और रघुनाथ बीसी जबरदस्ती मांगे गये पाँच मांगों को हमलोगों का हक छिना गया है। ऐसी स्थिति में हमलोग तुमलोगों को भी परेशान करेंगे। सोबोन सरदार पहले और निर्देशानुसार सबों से दोस्ती निभाता था। मांगे और शर्तें को मानने की बात चारों तरफ आग की तरह फैल गया। इस बात की जानकारी मेजर रफसेज के कान तक भी पहुँच गया। परन्तु मेजर रफसेज मांगों और शर्तों को नहीं मानने के लिए सोबोन सरदार पर काफी नाराज हो गया।

हीबी - बीबी चुनौती

उस समय मेजर रफसेज की तबियत अचानक बिगड़ गया था। वह जैंतगढ़ के रास्ते सम्बलपुर जाते वक्त रघुनाथ बीसी को आदेश दिया कि किसी भी तरह से सोबोन सरदार को पकड़ कर या उसे ठगकर मेरे पास सम्बलपुर लाये। मेजर रफसेज के आदेशानुसार उसे सम्बलपुर जाया गया। उसके पश्चात् उसे ढेंकी से कूट कर चिपटा कर दिया गया याने कि चूड़ा बनाकर उसे मार दिया गया। सोबोन सरदार के मारे जाने की खबर जंगल की आग की तरह चारो ओर फैल गया।


इसके बाद बड़ पीढ़, लालगढ़ पीढ़ और आंवला पीढ़ के लोगों ने एक बैठक बुलायी। बैठक में यह चर्चा किया गया कि पिंगुवा गोत्र समाज के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। सोबोन मुण्डा का बड़ा लड़का जुमाल एवं नुनीहाम (समड गोत्र) और रूइया - बलान्डिया का माटा मुण्डा के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। सोबोन मुण्डा को चूड़ा बनाकर मार डाला गया। रघुनाथ बीसी को मार कर बदला लेने के लिए प्रण किया गया। इस तरह एलान कर जुमाल, नुनीहाम और माटा मुण्डा लोगों के नेतृत्व में कुन्डियाघर, मुन्डा, रूइया - बलन्डिया, खड़बन्ध, पोखरिया के लोग और सबसे ज्यादा तेन्दो पिंगुवा के भाई-बन्धु लगभग पांच से छह सौ लोग जमा हुए। 5 फरवरी, 1830 के दिन सभी लोग जैंतगढ़ पहुँचे। परूतु पहले ही पुटीदार (खबरी) को मालूम चल गया और रघुनाथ बीसी सपरिवार मोलोमनपुर करंजिया (ओड़ीसा) भाग गया। यह सुन लोगों ने गुस्सा से जैंतगढ़ स्थित मकान एवं धन-सम्पत्ति को लूट लिया । नुनीहाम गुस्सा से एक घर में रही गर्भवती स्त्री जो ब्राह्मण स्त्री थी, उनको भाभी बोलते साथ ही चाकू मार कर मार डाला। उसके बाद गाय, बैल और बकरी को खेदते हुए वापस चला आया। कुछ दिनों के बाद रघुनाथ बीसी सपरिवार एवं सिपाहियों के साथ वापस जैंतगढ़ लौट आया। घर तहस-नहस स्थिति में और धन-सम्पत्ति लुट चुकी थी। गाँव बिगड़ चुका था यह देख कर वह गुस्से से लाल हो गया।


जुमाल नुनीहाम और माटा मुण्डा सभी लोगों का गुस्सा आग की तरह जल रहा था। इन लोगों के कान तक यह खबर पहुँच गयी कि रघुनाथ वीसी वापस जैंतगढ़ आया हुआ है। इस बार जुमाल और माटा मुण्डा लगभग 1000 से 2000 लोगों को लेकर 15 फरवरी, 1830 को पुनः जैतगढ़ पहुँचे। पहले की तरह ही खबरी ने रघुनाथ वीसी को बता दिया कि इस बार जुमाल काफी संख्या में लोगों को लेकर आ रहा है। इस खबर के मिलते ही रघुनाथ वीसी जैंतगढ़ के बगल वाले गाँव रिमिड़ि में सपरिवार भाग कर कहीं छिप गया। रिमिडि गाँव को चारों तरफ से घेर लिया गया। जैंतगढ़ में हाहाकार मच गया। गाँव-घर में तबाही मचा कर, गाय, बैल, बकरी आदि को वे लोग साथ लेते गये। ऐसा करके भी इन लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ।


रघुनाथ बीसी को पीढ़ में रहने वाले लोग पसंद नहीं करते थे। रघुनाथ उकसाने वाला काम कर रहा था। क्योंकि वह एक पयला नमक के बदले दो पयला धान जबरदस्ती वसूलता था। जैसा कि दो पयला नमक के बदले 12 पयला धान 2 वर्ष में बलन्डिया गाँव के माटा मुण्डा से लिये थे। ठीक उसी तरह उस समय पोड़ाहाट के राजा अचेत सिंह के नाम से प्रत्येक घर से एक-एक पयला घी माँगा जाता था। रघुनाथ बीसी के इस ज्यादती से पीढ़ के लोग गुस्सा से तिलमिला उठे । इन लोगों ने आन्दोलन कर ऐलान कर दिया। इस आन्दोलन की खबर चारों तरफ फैल गयी। इस बात की खबर कैप्टन बिलिकिन्सन तक भी पहुँचीं 'हो' लोगों के रिवाज के हिसाब से इन लोगों से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसके बाद एक जोड़ा बैल का जो रकम तय था उसके बदले गाँव-गाँव से एक रुपया या तो दो रुपया लेने का ऐलान किया गया। इन लोगों का गुस्सा स्वतः समाप्त हो गया, लोग शांत हो गये।


सोबोन मुण्डा का जमीन, रीति-रिवाज और समाज का शिकायत होने लगा। इनका मित्र (पोड़ो-सेंगेल) और अंग्रेज तक वहाँ से नहीं भागे जब तक वहाँ आग जलती रही। सोबोन मुण्डा के द्वारा ही कोल्हान में स्वतंत्रता आन्दोलन की शुरुआत क स्मरणीय योग्य बात यह है कि कोल्हान में पृथ्वी, दस्तुर, अं 14/127 मा यहीं से हुआ था ।


हिन्दी रूपान्तर- डॉ. दमयन्ती सिंकू (लेखक- घनश्याम गागराई)

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