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Showing posts from July, 2022

Sobon Sardar सोबोन सरदार

  सोबोन सरदार इतिहासकारों के अनुसार हो लोग मोगोलमुदी ( सिंहभूम) में 52वीं शताब्दी से रहते आ रहें हैं। प्राचीन काल से सिंहभूम घने जंगलों से, चारो ओर पत्थर एवं जंगल झाड़ घिरा हुआ है। 'हो' जाति के लोग जंगल- झाड़ को काट कर, साफ कर, गाँव-घर रहने योग्य बनाया और खेती-बारी का कार्य करते थे। दूसरे राज्य या दूसरे देश के साथ किसी तरह का झंझट झमेला नहीं था। आने-जाने का रास्ता जंगलों से भरा पड़ा था। इस राह पर चलना काफी डरावना था। रास्ते में बाघ भालू कहाँ पर निकल आयेंगें, सोचकर लोग डरते थे। वर्ष 1765 के आसपास झारखंड राज्य “जंगलो के महल नाम" से प्रचलित था। उस समय मोंगोलमुदी एक अनजान नाम था। मोंगोलमुदी किसी को मालूम न था । इसी का एक भाग कोल्हान है। उस समय यहाँ पर सिर्फ 'हो' जाति के लोग निवास करते थे। इसलिए 'हो दिसुम' के नाम से चर्चित हो गया। हो जाति के लोग ही यहाँ राजा एवं प्रजा बन गये। दोनों वर्ग के लोग एकजुट होकर रहने लगे। उस समय पोड़ाहाट के राजा हो जाति' को खुशी-खुशी जीवन बसर करते देख ईष्या से पागल हो गया था। वे 'हो' लोगों के क्षेत्र को तिरछी नजर से देखते थे। ...

Ghasi Singh "हो" वीर घासी सिंह

 " हो" वीर घासी सिंह   राजधानी में गणतंत्र दिवस पर चमकीले वस्त्र पहन कर जब राजपथ पर देश के विभिन्न भागों से आए वनवासियों की नाचती गाती टोलियाँ जनता के सामने से निकलती हैं तब क्या हमने इस बात की कल्पना भी की है कि इनमें उन लोगों की सन्तान भी हैं जिन्होंने सन् 1857 ई0 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही इस भूमि पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। स्वतंत्रता के इन्हीं प्रथम आराधकों में है सिंहभूमि की ' हो' जनजाति । अंग्रेजों के साथ इस जनजाति का पहला सम्पर्क सन् 1760 में हुआ जब मीर कासिम ने बंगाल की गद्दी मिलने के बदले मेदिनीपुर का इलाका ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया था। उन दिनों छोटानागपुर मेदिनीपुर का अंग था। इस भाग को अपने अधिकार में लेने की इच्छा मेदिनीपुर के अंग्रेज रेजीडेंट की हुई और उसने फर्ग्युसन के नेतृत्व में फौज की टुकड़ी रवाना कर दी। सन् 1813 तक सिंहभूम जिले को छोड़कर सारा छोटानागपुर अंग्रेजों के अधीन हो चुका था । आक्रमण हालांकि यहाँ के राजा ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया था। लेकिन ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सन् 1818 में सिहंभूम को पूरी ...

Purna Chandra Birua पूर्णचंद्र बिरूवा

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पूर्णचंद्र बिरुवा जिसने टाटा कॉलेज की स्थापना कर आदिवासी बहुल कोल्हान के एक हिस्से में लायी थी शैक्षणिक क्रांति पूर्णचंद्र बिरूवा । पूर्णचंद्र मतलब चंद्रमा का पूर्ण रूप जो कटा-पिटा न हो। जो पूर्ण हो। यानी पूर्णचंद्र अपने नाम के अनुरूप ही पूर्ण थे, अधूरे नहीं। जो भी किया पूर्ण किया। शिक्षा हो या राजनीति सबमें यही पूर्णता दिखी।  शैक्षणिक क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय तथा अनुकरणीय टाटा कॉलेज की स्थापना करनेवाले पूर्णचंद्र बिरूवा का जन्म 8 जुलाई 1917 को मंझारी प्रखंड के बड़ा लगड़ा नाम के एक अति पिछड़े गांव में एक प्रतिष्ठित व रसूखदार मानकी परिवार में हुआ था। सबने उसका नाम प्यार से पूर्णचंद्र रखा। तब किसी को आभास भी नहीं था कि बड़ा होकर ये बच्चा एक दिन शहर जाकर क्षेत्र का पहला और सबसे बड़ा कॉलेज की स्थापना कर शैक्षणिक क्रांति ला देगा। पूर्णचंद्र बिरूवा की प्राथमिक शिक्षा मंझारी प्रखंड में ही हुई। फिर एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय तथा बाद में जिला स्कूल चाईबासा से पढ़ाई की। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई साइंस कॉलेज पटना से पूरी की। कहते हैं कि देश की आजादी के पहले पश्चिमी सिंहभूम से किसी आदिवासी ...

LAKO BODRA DEATH ANNIVERSARY

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HEROH POROB (हेरो: पोरोब)

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                                                          हो हुदा रेया दोस्तुर (दुपुब दोस्तुर) हिसब ते हेरो: पोरोब अबू समाज रेया तीसरा मरंग पोरोब तना. साबिन मरंग पोरोब रे अबू अदिंग रिबू बोंगा बुरु या . नेन हेरो: पोरोब दो नेलेका बू बोंगाया - 1. हेरो: पोरोब रे अदिंग रे रुम (सियाली )सकाम रे रम्बा दालि बोंगा याबू. 2. कुंकल बाई तड नमा चाटू रे एन मुसिंग माडी बू इसिंग या . 3. आर नामा चाटू रेगे दालि बू तिकिया . 4. दालि रे सुनुम ससंग बुलुंग अर मसाला को काबू मिसेया. 5. अदिंग बितर रे बरिया रूम सकम रे 4-4 बाग़ (8) जगह रे बोंगा याबू . 6. मियेड रूम सकम रेदो 4 जगह रे 4 टी सिरजोन बोंगा बू बोंगा कोवा. - रंगा पाट - चंदन पाट - आ: बोंगा बीर बुरु बोंगा - सुकेन जतरा 7. आर मियेड रुम सकम रेदो 4जगा रे दुप्प्पुब दिसुम ...

Lako Bodra (लाको बोदरा)

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 लाको बोदरा लाको बोदरा का जन्म कोल्हान - सिंहभूम दिशुम के खूंटपानी प्रखण्ड के अयोध्या पीढ़ पाहसेया नामक राजस्व गाँव में सन् 19 सितंबर 1919 ई. में हुआ था। लाको बोदरा में के पिता लेबेया बोदरा एक धनी किसान थे। माता का नाम जानो कुई था । पाहसेया गाँव में अधिकांशतः बोदरा किलि (गोत्र) के लोग निवास करते हैं। 30-40 परिवारों का यह गाँव समतल एवं मैदानी इलाके में अवस्थित है। चाईबासा-चक्रधरपुर के बीच सड़क किनारे अवस्थित खूँटपानी गाँव से उत्तर दिशा में पाहसेया जाने में लगभग चार किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। पाहसेया गाँव के पूरब दिशा में दोपाई गम्हरिया, पश्चिम में बड्चोम हातु, टाकुरा गुटू, उत्तर में चुडुयुः तथा दक्षिण में दोपाई आदि गाँव अवस्थित हैं। इसी पाहसेया गाँव में लाको बोदरा का जन्म हुआ था। वंश वृक्ष का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है: लाको बोदरा का वंशवृक्ष लेबेया बोदरा के चार पुत्र- 1. सुमी कुई 2. लाको बोदरा 3. डेलका कुई 4. बालेमा कुई 5. दामु बोदरा। इस वंश वृक्ष के आधार पर लाको बोदरा अपने पिता लेबेया बोदरा के पाँच सन्तानों में दूसरी सन्तान थे। वे बचपन से ही चंचल थे। बड़े बुजुर्...