हो जनजाति में "हो" शब्द की उत्पत्ति

 हो शब्द की उत्पत्ति के संबंध में यह माना जाता है कि हो की उत्पत्ति एक शब्द 'हो' से हुई है। 'होड़मो' एक शब्द है जिसकी उत्पत्ति होड़ से हुई है। होड़ का संक्षिप्त ध्वनि 'हो' है। #हो का तात्पर्य मनुष्य या आदमी से है इसे समझने के लिए -

 हो        मुण्डारी         संताली

हो          होड़ो              होड़ 

यहाँ प्रयत्न लाघव के कारण मुण्डारी होड़ो, संताली होड़ से हो में 'हो' गया। वास्तव में हो ही मूल शब्द है। हो से होड़ो तथा होड़ शब्द बना है। इन्साइक्लोपीडिया मुण्डारिका के लेखक जॉन बपतिस्त हॉफमैन के अनुसार इस प्रजाति का नाम मूलतः 'हो', 'होड़ो', 'होडको' है। 'हो' उस मूल शब्द का ही उच्चारण भेद से बना संक्षिप्त रूप है। यह मुण्डा प्रजाति की शाखा है। 'होड़ों का अर्थ है आदमी। 'हो' मुण्डा को ही केवल 'हो' के नाम से जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति एक अण्डज से मान सकते हैं। अण्डा से जब कोई जीव की उत्पत्ति होती है तब सबसे पहले एक बिन्दु 'न्यूक्लियस प्वाइंट' बनता है उससे धीरे-धीरे शरीर का रूप अर्थात् 'होम्हो' तैयार होता है जिसे होम्हो बनने के पूर्व साधारणतः "होओः तनःए" कहते हैं। यहीं से हो शब्द की उत्पत्ति हुई है। इस तरह हो से बना "होमो सेपियन" अर्थात् वह जीवधारी जो माँस का बना हुआ है "होम्हो" कहा जाता है जो हो भाषा में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।


'होड़' शब्द की उत्पत्ति के विषय में मुण्डा जनजाति में यह लोककथा प्रचलित है कि पृथ्वी में पहले जल ही जल था। भगवान पत्ते पर निष्प्रयोजन घूमा करता था। उन्होंने सबसे पहले जॉक (लैंडड) या चेरा (Earth Worm) की सहायता से पानी के भीतर से मिट्टी निकाली और धरती का निर्माण किया। धरती बनी उस पर घास-फूस, पेड़-पौधे और पशु-पक्षी आदि का सृजन किया। उन्हीं पक्षियों में से 'हुर' नामक एक पक्षी ने एक अण्डा दिया। अण्डे में से दो मानव संतान एक लड़का और एक लड़की निकली। आगे चलकर उन्हीं से मानव जाति का विकास हुआ। हुर के अण्डे से निकलने के कारण मनुष्य होरो


को (होड़ोको) या होड़ो होन को कहलाये।"


डॉ. प्रकाश चन्द्र उराँव के अनुसार कालान्तर में तमाड़ से मुण्डाओं का एक दल सिंहभूम चला गया और वहाँ जाकर वे 'हो' कहलाये। एक दल शेखरभूम से ही अलग होकर दामोदर नदी पार समतल क्षेत्र में जा बसा वे 'संताल' कहलाये।


कोल लको बोदरा कृत 'शार होरा' द्वितीय भाग में हो, मुण्डा, संताल के बीच आपसी सम्बन्ध का उल्लेख इस प्रकार से किया गया हैः- सात पहाड़ों के मध्य लुकु बुरु अवस्ति है। उस पहाड़ पर 'लुकु हड़म' की उत्पत्ति हुई थी, और इचः गड़ा के समीप लुकु बुढ़ी की उत्पत्ति हुई थी। इनका दो पुत्र और एक पुत्री सुरमी, दुरमी और मदेः का जन्म हुआ। दुरमी और मदेः के मिलन से बड़ाम, बोयतड़, चुरदु, सारो, मिरु और शुकु की सृष्टि हुई। सुरमी मदेः के मिलन से मुटु, सेनतला, एरे, ओरल, पूतम और लिटा की सृष्टि हुई। डॉ. भुवनेश्वर सवैयाँ ने "आदिवासी भाषायी पत्रकारिता का समाजशास्त्रीय अध्ययनः संताली, मुण्डारी, हो, खड़िया एवं कुडुख पत्रिकाओं के संदर्भ में" नामक अपना शोध प्रबन्ध में इसका उल्लेख किया है कि प्राचीन काल में जन्म, मंत्र और तंत्र विद्या सबसे अधिक मुटुकन (मुण्डा) को मिला, रक्षा का भार सेनतला (संताल) को मिला तथा देख-रेख एवं पालन-पोषण का भार लिटा लड़का कोल (हो) को मिला। मुण्डा, संताल और हो सुरमी के वंशज हैं।

इसका स्पष्टीकरण इस तालिका के द्वारा किया जा सकता है :-






Comments

Anonymous said…
Esu badiyan jankari Ben udub marshal keda esu pursh bitiyam jatika Babu tikin👍👍
Anonymous said…
bitiyam
Anonymous said…
ଏସୁ ପୁରାଃ ବିତିଏମ ସାୟଵ ତିକିଞ ଜଆର ଗେ
Anonymous said…
Esu jagar
Anonymous said…
Nice

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