किमिन सला (वधू का चुनाव) हिंदी अनुवाद

वीर सिंह जब बूढ़ा हो चला तब उसे अपने एकलौते पुत्र रसिका की शादी की चिन्ता हुई। रसिका की माँ भी घर का काम-धाम अपनी बहू को सौंप कर दुनियादारी से मुक्त होना चाहती थी।


एक दिन वीर सिंह ने रसिका से कहा, "हे पुत्र! अब हम दोनों बूढ़े हो चले। अब तुम्हारी शादी हो जानी चाहिए। अपनी बहू के लिए हमने तीन कन्या को देखा है। एक गाँव के पूर्व में, दूसरी पश्चिम में और तीसरी दक्षिण में है। अब तुम तीनों में से एक को चुनकर बताओ ताकि तुम्हारी शादी अविलम्ब कर दी जाए। होशियारी से वधू का चुनाव करना। "मड़े बुरू कंणा डोम" अर्थात् आँख रहते अन्धा न बनना।"


रसिका ने कहा कि यदि आपकी ऐसी इच्छा है, तो ऐसा ही होगा, "अयं गूगु दिरि लेकानिः" यानी मेरे लिए इशारा ही काफी है। पिताजी! अब मैं एक भिखारी का रूप धारण कर परीक्षा के लिए जाता हूँ।


वीर सिंह ने अपने बेटे को आनन्द से विदा किया।


रसिका के पिता ने चुने हुए गाँवों में से एक गाँव में पहुँच कर आवाज लगाई, "भिखारी को थोड़ा-सा अन्न मिले मालकिन ! भूख-प्यास से मर रहा हूँ। कुछ मिले मालकिन !"


भिखारी को देखकर घर से एक युवती आई और बोली, "ओ भिखारी! कल भी धान नहीं कूटा गया। लो थोड़ा-सा चावल ही ले लो।"


भिक्षा ग्रहण करते हुए रसिका बोला, "युग-युग जीओ मालकिन ! तुम कितनी अच्छी हो।"


और रसिका घर वापस चला आया।


वीर सिंह ने रसिका से पूछ, "क्या समाचार है बेटा!"


रसिका ने कहा, "वे तो बड़े ही धनी और दानी प्रतीत होते हैं। अच्छी तो थी, पर घर को ठीक से नहीं रख सकेगी। कल मैं दूसरे गाँव को जाऊँगा। लेकिन एक बात है "केड़ा रेचा दिरिंगे नेली, हड़ा रेचा दुटायं लेकाइ" यानी काड़ा हो तो देख सींग कर पहचानें और बैल हो तब न दाँत गिनकर बताऊँ।


यह सुनकर वीर सिंह ने कहा, "नहीं जानते हो बेटा! कहा जाता है, "मोचागें सिबिला बुछ रेयां हकु, सोया रेयो जिलु” अर्थात् बातचीत ही स्वादिष्ट है आयु की विशेष चिन्ता नहीं।


दूसरे दिन रसिका दूसरे गाँव के एक घर के पास पहुँचा और आवाज लगाने लगा, "मेरे मालिक, मुझे कुछ मिल जाए। फटा-पुराना कपड़ा ही सही, खुद्दी-चुन्नी ही सही। मिलजाय मालिक! थोड़ा-सा मांड़-पानी भी मिले मालकिन !"


घर से एक युवती निकल कर बोली, "ओह! रोज परेशान हूँ भिखमंगों से ! कोई कपड़ा माँगता है, कोई चावल, कोई मांड़! तुम लोगों ने तो परेशान कर दिया।" 

रसिका गिरगिराया, "बहुत भूखा हूँ माईजी!"


गिरगिराने पर युवती ने रसिका को भीख दे दी।


तीसरे दिन वीर सिंह ने रसिका से पूछा, "क्या समाचार है बेटा?"


रसिका ने कहा, "आपने कैसी वधू चुन रखी है? वह भी पसन्द नहीं आई। वह तो चिड़चिड़ी और गंवार मालूम पड़ती है। बिना विचारे, बिना देखे सुने भीख दे बैठती है। आज तीसरे गाँव की ओर जा रहा हूँ। मेरी माताजी पानी भरने गई है। आने पर उनसे पूरा समाचार कह दीजियगा।"


रास्ते में ही माँ से मुलाकात हो गई। माँ ने आशीर्वाद दिया, "मेरे दुलारे,


सकुशल आना। लौटकर खुशखबरी सुनाना। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहे।" रसिका ने माँ को प्रणाम करते हुए कहा, "उलि दरू रे उलिगे जो ओडा यानी आम के वृक्ष पर आम ही तो फलता है।"


रसिका गाँव पहुँच गया और आँगन के समीप खड़ा होकर ऊँची आवाज में कहने लगा, "बड़ी भूख लगी है मालिक! खाने को कुछ मांड़-पानी मिल जाए।"


घर से एक युवती निकली। इस युवती का नाम था-बुधनी। बुधनी बोली, "कौन है! अरे भिखारी! इतना मोटा तगड़ा जवान! क्या तुम भिखारी हो? शायद तुम आलसी हो! काम कर नहीं खाते, आलसी हो; जाओ, तुम्हें कुछ न दूँगी। अन्धे, लंगड़े और निकम्मे को दी जाती है। और देखो, हमारी "हो" जाति की यह प्रथा नहीं है। जाओ, चले जाओ। नहीं तो हमारे घर में नौकरी करो।"


रसिका कड़े स्वर में बोला, "खूब बचाकर रखना।" और विदा ही गया। वीर सिंह ने रसिका को खुश देखकर पूछा, बेटा! आज तो बहुत खुश मालूम होते हो! कुछ समाचार हमें भी तो सुनाओ।


रसिका ने कहा-कल जिसके घर मैं गया था, उसका नाम और काम तो बहुत उपयुक्त है। बुधनी वास्तव में बुद्धिमती है। उसने मुझसे कहा-पै-यम तेयां अर्थात् इतने तगड़े नौजवान ! आलस में भीख माँगते हो। पिताजी, क्या यह बात सच है कि हो आदिवासी लोग भीख नहीं माँगते? तब कमजोर लोग कैसे जीते हैं?"


वीर सिंह ने उत्तर दिया, हाँ पुत्र! यह बात सही है। भीख माँगने बुरा समझते हैं। जो चल-फिर नहीं सकते, अधिक परिश्रम नहीं कर सकते, उन्हें वैसे काम दिए जाते हैं, जिन्हें वे आसानी से कर सकें। अच्छी बात है, तुमने वधू का चुनाव कर लिया। अब शादी-ब्याह की बात शुरू कर देनी चाहिए। अब हम अगुआ को भेजेंगे। तय हो जाने पर उनलोगों को बुलाकर पन दिया जाएगा उसके बाद शादी होगी। शगुन विचार होने के बाद शादी होगी।


इस तरह ब्याह सम्बन्धी बात खत्म हुई।


इसके बाद रसिका ने वीर सिंह से कहा-अब कुटुम्बों को बुलाना चाहिए, साक्षात्कार में अब कम ही दिन बचे हैं।


कुटुम्बगण आये। वीर सिंह ने कहा- "भाइयों! गौशाला में जानवर, यह लो पन का बकाया 20 रुपये और उसके अलावा यह 20 रुपये भी रख लो, जिसे साक्षात्कार के बाद पुत्र-वधू को देना है।"


उधर बुधनी पहले ही सुन चुकी थी कि युवक बड़ा बुद्धिमान है, फिर भी पन लेने के ख्याल से अपने पिता से बोली, "बारात पहुँचने के पहले ही, हमारे गाँव के किनारे रास्ते पर एक ठेहुने भर गढ़ा खोदवाएँ, जिससे होकर बारात वाले आयेंगे गढ़ा कीचड़ से भरा हो और उसके हर ओर कटोरे में तेल रहना चाहिए। जब बारात वाले आएँ तब उनसे कहा जाय कि आप लोग इस कीचड़ से होकर आवें तब यह ठीक माना जायगा।

साक्षात्कार में अब कम ही दिन बचे हैं।


कुटुम्बगण आये। वीर सिंह ने कहा "भाइयों! गौशाला में जानवर, यह लो पन का बकाया 20 रुपये और उसके अलावा यह 20 रुपये भी रख लो, जिसे साक्षात्कार के बाद पुत्र-वधू को देना है।"


उधर बुधनी पहले ही सुन चुकी थी कि युवक बड़ा बुद्धिमान है, फिर भी पन लेने के ख्याल से अपने पिता से बोली, "बारात पहुँचने के पहले ही, हमारे गाँव के किनारे रास्ते पर एक ठेहुने भर गढ़ा खोदवाएँ, जिससे होकर बारात वाले आयेंगे गढ़ा कीचड़ से भरा हो और उसके हर ओर कटोरे में तेल रहना चाहिए। जब बारात वाले आएँ तब उनसे कहा जाय कि आप लोग इस कीचड़ से होकर आवें तब यह ठीक माना जायगा।


बुधनी के पिता ने कहा कि ऐसा ही किया जाएगा।


बारात वालों को देखकर मानी कहने लगा-प्रिय बन्धुगण! आप लोग इसी कीचड़ से होकर इस पार आवे और तब इस तेल को आपके पैर में मखाया जाएगा।


बारात वाले रसिका के पास जाकर कहने लगे, रसिका भाई! ये लोग तो कीचड़ की राह से पार होने को कह रहे हैं। इतना ही नहीं, पार होकर बिना धोए तेल मखाने को भी कह रहे हैं। अब क्या हो?


रसिका ने कहा, आप लोग चिन्ता न करें। चलिए, पहले पार हो जाएँ। इसके बाद मकई का डंठल देकर कहा, भाइयो! इससे पैरों के कीचड़ कुरेद कर निकाल दें तब तेल मखाया जाएगा।


इस तरह दोनों की शादी हो गई।

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