जोनोम दोसतुर
खुशहाल जीवन व्यतित करने वाले हो समुदाय के लोगों की पहचान उनके रिति रिवाज परंम्परा से ही हो जाती है। जिसप्रकार शादी ब्याह की परंम्परा होती है उसीप्रकार किसी शिशु के जन्म की भी परम्परा एवं रिति रिवाज होते हैं। एक नवजात शिशु के जन्म के उपरान्त किस तरह के काम करने चाहिए कैसे-कैसे काम नहीं करने चाहिए किस तरह के खान-पान से जन्म देने वाली माँ को परहेज करना चाहिए ताकि उसे किसी तरह के दुःख तकलीफ ना हो इन सारे चीजों की जानकारों आदि काल से ही देखते सुनते एवं काम करते-करते लोंगो में स्थानातरिंत होती जाती है। अर्थात दूसरे शब्दों में कहे तो इसे ही दोस्तुर कहते है। नवजात शिशु के जन्म होने पर हो जाति का अलग ही रिवाज होता है। बच्चे को जन्म देने वाली माँ नवजात शिशु और शिशु के जन्म के समय उपस्थित औरत बाकी दूसरे लोगों के साथ सटती नहीं है ना ही किसी को छूती है। वो लोग अलग ही हटकर रहती है। नदी तालाब या कहीं दूर जाने पर भी पाबन्दी रहती है। क्योंकि इस अवधि में उन्हें छूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि छूत के समय नदी-तालाब, देशाउली पूजा स्थल, पूर्वजों को पूजने का स्थल एवं अन्य स्थलों में जाने से वे स्थल दूषित...